उपासना स्थल (इबादतगाह) अधिनियम 1991 पर सोशलिस्ट पार्टी (इण्डिया) द्वारा प्रेस वार्ता का आयोजन

Press conference organized by Socialist Party (India) on Places of Worship Act 1991

उपासना स्थल अधिनियम 1991 पर सोशलिस्ट पार्टी (इण्डिया) द्वारा प्रेस वार्ता का आयोजन

नई दिल्लीः प्रेस क्लब, नई दिल्ली में सोशलिस्ट पार्टी (इण्डिया) द्वारा उपासना स्थल अधिनियम 1991 पर एक प्रेस वार्ता का आयोजन किया गया। इस वार्ता को सोशलिस्ट पार्टी (इण्डिया) के राष्ट्रीय अध्यक्ष अधिवक्ता थम्पन थाॅमस, अधिवक्ता अनिल नौरिया, अधिवक्ता इंदिरा उन्नीनायर ने सम्बोधित कया। अधिवक्ता शशांक सिंह ने संचालन किया व सोशलिस्ट पार्टी (इण्डिया) के महासचिव श्याम गम्भीर ने धन्यवाद ज्ञापन किया।इस अवसर पर सैयद तहसीन अहमद, उपाध्यक्ष, सोशलिस्ट पार्टी (इण्डिया),डॉ संदीप पांडे, महा सचिव सोशलिस्ट पार्टी (इण्डिया) भी उपस्थित थे।
थम्पन थाॅमस ने कहा कि एक बार उपासना स्थल अधिनियम बन गया तो अयोध्या के अलावा नए मामले, जैसे मथुरा या काशी या अन्य जगहों पर भी उठाना अधिनियम का उल्लंघन है और यह सिर्फ राजनीतिक लाभ लेने के इरादे से किया जा रहा है। हमें आने वाले चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को हराना ही होगा ताकि राजनीति में धर्म का इस्तेमाल रोका जा सके। उन्होंने कहा कि देश के सामने अन्य चुनौतियां भी हैं, जैसे गरीबी, बेरोजगारी, महंगाई, आदि, किंतु भाजपा ने इस मुद्दों से ध्यान हटा दिया है। चुनावी बांड के माध्यम से कम्पनियों पर छापे डाल कर उनसे चंदा वसूला गया है इसकी ही जांच होनी चाहिए ताकि दोषी नेताओं के खिलाफ कार्यवाही हो सके।

इंदिरा उन्नीनायर ने बताया कि वे सोशलिस्ट पार्टी (इण्डिया) के नेता बलवंत सिंह खेड़ा की तरफ से शिरोमणि अकाली दल के खिलाफ एक मुकदमा कर चुकी हैं। शिरोमणि अकाली दल ने दो संविधान बन रखे हैं एक आम चुनाव के लिए दूसरा गुरुद्वारा प्रबंधक समितियों के चुनाव के लिए, जो सांविधानिक मूल्य धर्म निर्पेक्षता के खिलाफ है। इस मामले की सुनवाई हो चुकी है लेकिन न्यायालय निर्णय नहीं सुना रही। इंदिरा उन्नीनायर अब दूसरा मुकदमा करने जा रही हैं जिसमें राजनीति में धर्म के इस्तेमाल को चुनौती दी जाऐगी।

अनिल नौरिया ने विस्तार से बात रखते हुए बताया कि उपासना स्थल अधिनियम का उद्देश्य, जो उस समय के राष्ट्रपति वेंकटरमण ने अपने भाषण में कहा था, यह था कि बाबरी मस्जिद जैसे मामले और न उठाए जाएं। उन्होंने 1924 में महात्मा गांधी द्वारा शुरू किए गए अनशन के दौरान हुई सर्व धर्म बैठक में पारित प्रस्ताव का भी जिक्र किया जिसमें मदन मोहन मालवीय व स्वामी श्रद्धानंद भी शामिल थे, कि किसी भी धार्मिक स्थल के चरित्र को बदलने की नीयत से उसपर कोई हमला नहीं किया जाएगा। 1991 के अधिनियम की तरह इसमें बाबरी मस्जिद जैसा कोई अपवाद भी नहीं छोड़ा गया था क्योंकि तब तक राम जन्म भूमि का कोई आंदोलन ही नहीं था। इस बैठक की पुष्टि जवाहरलाल नेहरू ने अपनी आत्मकथा में की है।
बैठक के शुरू में सोशलिस्ट अधिवक्ता मंच का गठन किया गया जिसके अध्यक्ष अधिवक्ता अनिल नौरिया बनाए गए व समन्वयक अधिवक्ता शशांक सिंह। शशांक सिंह को जिम्मेदारी दी गई कि अन्य अधिवक्ताओं से बात कर उन्हें सोशलिस्ट अधिवक्ता मंच में शामिल करें।

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