मुस्लिम संगठन वक्फ की जमीन छीनने के प्रयासों का विरोध करने के लिए सभी कानूनी साधन अपनाएंगे: प्रोफेसर सलीम इंजीनियर
नई दिल्ली, 7 फरवरी: जमाअत-ए-इस्लामी हिंद के उपाध्यक्ष प्रोफेसर सलीम इंजीनियर ने वक्फ पर जेपीसी के खिलाफ जोरदार ढंग से आवाज उठाई और कहा कि मुस्लिम संगठन वक्फ संशोधन विधेयक-2024 के जरिए वक्फ की जमीन हड़पने के प्रयासों का विरोध करने के लिए सभी कानूनी साधन अपनाएंगे। जमाअत के मुख्यालय में आयोजित मासिक प्रेस कांफ्रेंस को ब्रीफ करते हुए उनहोंने कहा कि वक्फ संशोधन विधेयक 2024, मुसलमानों के धार्मिक और संवैधानिक अधिकारों के लिए खतरा है। जमाअत-ए-इस्लामी हिंद इसका कड़ा विरोध करती है। संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) ने विपक्ष की आवाजों और नागरिकों की लाखों आपत्तियों को नजरअंदाज कर दिया। व्यापक विरोध के बावजूद विधेयक को पारित कर दिया गया। इससे प्रतीत होता है कि परामर्श प्रक्रिया निरर्थक अभ्यास था। इस विधेयक का उद्देश्य सुधार के नाम पर वक्फ संपत्तियों पर नियंत्रण हासिल करना है। यह वक्फ की परिभाषा में बाधा डालता है, संरक्षक की भूमिका में बदलाओ लाता है और वक्फ बोर्ड की स्वतंत्रता को कम करता है। उल्लेखनीय बात यह है कि केन्द्रीय वक्फ परिषद और वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिमों को शामिल करने का प्रावधान है जिससे परिषद में उनका प्रतिनिधित्व एक से बढ़कर 13 और बोर्डों में सात हो जाएगा। यह अनुच्छेद 26 का उल्लंघन है, जो धार्मिक अल्पसंख्यकों को अपने संस्थानों के प्रबंधन के अधिकार की रक्षा करता : जमाअत-ए-इस्लामी हिंद एनडीए के सहयोगियों और विपक्ष सहित सभी धर्मनिरपेक्ष दलों से इस विधेयक का विरोध करने का आग्रह करती है, जो संविधान के अनुच्छेद 25, 26, 29 और 14 का उल्लंघन करता है। जमाअत सरकार से इस विधेयक को वापस लेने और इसके बजाय मौजूदा वक्फ कानूनों को प्रभावी ढंग से लागू करने पर ध्यान केंद्रित करने का आग्रह करती है। सरकार द्वारा उक्त विधेयक को अलोकतांत्रिक तरीके से पारित करने की दुर्भाग्यपूर्ण संभावना को देखते हुए जमाअत -ए-इस्लामी हिंद अन्य मुस्लिम संगठनों के साथ ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) का समर्थन करेगी और मुस्लिम समुदाय के हड़पे गए अधिकारों को सुरक्षित करने और उनके वक्फ संस्थानों और संपत्तियों की रक्षा करने के लिए सभी कानूनी और संवैधानिक साधनों को अपनाकर इन प्रयासों का विरोध करेगी।
जमाअत-ए-इस्लामी हिंद के राष्ट्रीय सचिव सैयद तनवीर अहमद ने महाकुंभ भगदड़ के बारे में बात करते हुए कहा हम प्रयागराज महाकुंभ भगदड़ में श्रद्धालुओं की दुखद मृत्यु पर शोक व्यक्त करते हैं। हमारी हार्दिक संवेदनाएँ उन परिवारों के साथ हैं जिन्होंने अपने प्रियजनों को खोया है। यह दुर्भाग्यपूर्ण घटना एक बार फिर इस महत्व को रेखांकित करती है कि इतने विशाल सम्मेलन के लिए सतर्क योजना और भीड़ प्रबंधन की तत्काल आवश्यकता है। श्रद्धालुओं की सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। सामान्य श्रद्धालुओं के लिए निर्बाध व्यवस्था सुनिश्चित की जानी चाहिए, और प्रशासन को वीआईपी के लिए विशेष सेवाओं और पहुंच के बजाय उनकी सुरक्षा को प्राथमिकता देने की मूलभूत जिम्मेदारी को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार को जिम्मेदारी लेनी चाहिए और अपनी व्यवस्था में कमियों को तुरंत दूर करना चाहिए। पूरे प्रकरण का एक और खेदजनक पहलू भगदड़ पर राज्य सरकार की प्रतिक्रिया थी। मृतकों और घायलों की संख्या को स्वीकार करने और उसके बारे में पारदर्शी होने के बजाय मीडिया को अनावश्यक रूप से चुप कराने और ऐसी किसी भी रिपोर्टिंग को रोकने के प्रयास किए गए जिसमें सरकार और प्रशासन की खराब छवि दिखाई गई हो या महाकुंभ की व्यवस्थाओं में कमियों को उजागर किया गया हो। इस निरंकुश दृष्टिकोण ने मीडिया को इस विशाल आयोजन के प्रबंधन में खामियों का आलोचनात्मक विश्लेषण करने से रोक दिया। जमाअत-ए-इस्लामी हिंद विशेषकर मुस्लिम समुदाय के लोगों की सराहना करती है, जिन्होंने हजारों महाकुंभ तीर्थयात्रियों की जान बचाने और उन्हें सहायता प्रदान करने के लिए असाधारण प्रयास किए। ये प्रयास एक बार फिर इस बात को रेखांकित करते हैं कि कैसे नफरत के माहौल के बावजूद, देश के सामान्य नागरिक, विशेषकर अल्पसंख्यक, राष्ट्र की सेवा के लिए आगे आ रहे हैं। हमारे नेताओं और पूरे देश को सांप्रदायिक सद्भाव, भाईचारा और एकजुटता बनाए रखने में उनके कार्यों से प्रेरणा लेनी चाहिए।
जमाअत के उपाध्यक्ष प्रोफेसर सलीम इंजीनियर ने भी केंद्रीय बजट 2025-26 का संक्षिप्त विश्लेषण देते हुए कहा, केंद्रीय बजट 2025-26 में आयकर में कटौती, छूट की सीमा को बढ़ाकर 12 लाख रुपये करने और मध्यम वर्ग को लाभ पहुंचाने के लिए स्लैब को समायोजित करने जैसे कई सकारात्मक पहलुओं का जमाअत-ए-इस्लामी हिंद सराहना करती है। इससे करदाताओं के हाथ में अधिक व्यय योग्य आय बचेगी तथा उपभोग एवं विकास को बढ़ावा मिलेगा। दूसरी सकारात्मक बात यह है कि 1 लाख करोड़ रुपये के राजस्व नुकसान के बावजूद, बजट में राजकोषीय विवेक बनाए रखा गया तथा राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद के 4.4% तक सीमित रखा गया। इससे यह सुनिश्चित होगा कि हमारा उधार नियंत्रित रहेगा। इसके अलावा व्यावसायिक विनियमनों को सरल बनाने के उद्देश्य से एक उच्च स्तरीय समिति द्वारा विनियामक सुधारों को आगे बढ़ाने से व्यवसाय को आसान बनाने में मदद मिलेगी तथा निवेश और व्यापार को बढ़ावा मिलेगा। हालाँकि, हम कई मामलों में इस बजट से निराश हैं। युवाओं में बढ़ती बेरोजगारी, प्रति व्यक्ति कम जीडीपी और कृषि विकास के साथ गंभीर आजीविका संकट के आधार पर वित्त मंत्री के लिए बजट में आमूलचूल नीतिगत बदलाव करने का एक अच्छा अवसर था ताकि असमानता, बेरोजगारी और उपेक्षित वर्गों की समस्या को दूर करने के लिए पुनर्वितरण न्याय, समान विकास और प्रभावी शासन को प्राथमिकता दी जा सके। जमाअत-ए-इस्लामी हिंद ने बजट से पहले वित्त मंत्रालय को अपने सुझाव सौंपे थे जिसमें व्यापार वृद्धि और कर प्रोत्साहन पर केंद्रित ‘आपूर्ति’ की रणनीति से हटकर नागरिकों की क्रय शक्ति में वृद्धि, उपभोग को प्रोत्साहन और कल्याणकारी कार्यक्रमों को बढ़ाने के उद्देश्य से ‘मांग’ की रणनीति अपनाने की जोरदार वकालत की गई थी। दुर्भाग्य से, जब हमने बजट 2025-26 का अध्ययन किया तो हमें लगा कि हमारे अधिकांश सुझावों को नजरअंदाज कर दिया गया। ऐसा लगता है कि बजट में कई अवसर चूक गए। केंद्रीय बजट 2025-26 को स्वाभाविक तौर से विस्तारवादी होना चाहिए। इसके अलावा, बजट में अल्पसंख्यकों के उत्थान, एससी/एसटी सशक्तिकरण या कृषि ऋण राहत पर स्पष्ट रूप से ध्यान नहीं दिया गया है जिससे सामाजिक न्याय और समान विकास के प्रमुख मुद्दे अनसुलझे रह गए हैं। हमने राजस्व के मामलों में आवश्यक वस्तुओं पर जीएसटी की अधिकतम सीमा 5% रखने, विलासिता कर लगाने, बड़ी कंपनियों पर अप्रत्याशित लाभ कर लगाने और केंद्रीय करों में राज्यों की हिस्सेदारी बढ़ाकर 50% करने का सुझाव दिया था। लेकिन, बजट इन महत्वपूर्ण उपायों पर चुप है। इसी प्रकार, विदेशी प्रौद्योगिकी कंपनियों पर डिजिटल कर, कर-मुक्त अवसंरचना बांड, तथा प्रभावी मानकों के साथ मजबूत सीएसआर मानदंडों को शामिल नहीं किया गया। इन सुधारों के अभाव से असमानता को दूर करने, कल्याणकारी कार्यक्रमों के लिए राजस्व उत्पन्न करने तथा वित्तीय न्याय सुनिश्चित करने के अवसर समाप्त हो जाएंगे। हमारा दृढ़ मत है कि सरकार को एक प्रगतिशील राजस्व नीति अपनाने की आवश्यकता है जो आम नागरिक को प्राथमिकता दे तथा समतामूलक विकास का समर्थन करे।