मोहन भागवत की हिंदुत्व राष्ट्र की घोषणा देश को तबाह कर देगी:एस डी पी आई

मोहन भागवत की हिंदुत्व राष्ट्र की घोषणा देश को तबाह कर देगी

नई दिल्ली:आर एस एस प्रमुख मोहन भागवत का इस वर्ष विजयदशमी संदेश आरएसएस प्रचारक एमएस गोलवलकर द्वारा परिकल्पित हिंदुत्व राष्ट्र कि एक अर्ध सरकारी घोषणा थी। यह घोषणा कि धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक देश भारत को एक धर्मतंत्र बनाया जाएगा, ना सिर्फ संविधान विरोधी है बल्कि भारत की विविधता में एकता की मूल भावना को ध्वस्त करती है। मोहन भागवत द्वारा जनसांख्यिकी असंतुलन का उल्लेख करना भी इसी ओर इशारा करता है।

8 वर्ष पहले केंद्र में संघ परिवार शासन के सत्तारूढ़ होने के बाद से ही देश विकास के सभी आयामों में पिछड़ता जा रहा है। आर एस एस के महासचिव दत्तात्रेय होसबोले ने खुद कहा है कि भारत में गरीबी, बेरोजगारी और असमानता बढ़ रही है और गरीबी की समस्या ने विकराल रूप ले लिया है। उनके खुलासे में बताया गया कि भारत में 20 करोड से ज्यादा लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवन बसर कर रहे हैं, जबकि 23 करोड से अधिक लोगों की दैनिक आए ₹375 से भी कम है। भारत में बेरोजगारों की संख्या 4 करोड़ से भी ज्यादा है और श्रम शक्ति सर्वेक्षण के अनुसार बेरोजगारी दर 7.6% पहुंच गई है। होसबोले ने कहा कि देश के अधिकतर भागों में लोगों को पीने का साफ पानी और पौष्टिक भोजन उपलब्ध नहीं है। उन्होंने सवाल किया कि क्या यह न्याय संगत है कि देश की 20% संपदा केवल 1% लोगों के हाथ में है?

दत्तात्रेय होसबोले के खुलासे में कुछ भी नया नहीं है। यह वही आंकड़े और तथ्य हैं जिन्हें पिछले कई वर्षों से देश की फासीवाद विरोधी राजनीतिक पार्टियां, सामाजिक सांस्कृतिक और स्वैच्छिक संगठन और जन अधिकार कार्यकर्ता लगातार बता रहे हैं जिन्हें बस होसबोले ने दोहरा दिया है। फिर भी अब तक संघ परिवार का दुष्प्रचार यह रहा है कि जो भी इन आंकड़ों को बताता है वह देश की निंदा कर देश को नीचा दिखाने का काम कर रहा है।

हालांकि देश इन ऊपर लिखित गंभीर समस्याओं से घिरा हुआ है, भागवत के भाषण में इन नाकामियों के समाधान नहीं सुझाए गए हैं बल्कि यह भाषण ऐसे संदर्भों से भरा हुआ है जिससे संघ परिवार के सत्ता में आने के बाद से बेलगाम बढ़ रहे सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की खाई और ज्यादा गहरी हो जाएगी। असल में भागवत कहना चाहते हैं कि ‘धर्म आधारित असमानता’ और ‘अनिवार्य धर्मांतरण’ की वजह से देश अपनी पहचान खो देगा। वर्तमान आंकड़ों के अनुसार बहुसंख्यक समुदाय की जनसंख्या 86% है जबकि अन्य समुदायों की कुल जनसंख्या 14% है। भागवत का कहना है कि अभी भी अनियंत्रित जन्म, धर्म परिवर्तन और बॉर्डर के माध्यम से घुसपैठ की वजह से अन्य समुदायों की वृद्धि धार्मिक असमानता पैदा कर रही है।

यह उसी संघ परिवार के मुखिया हैं जो हमेशा ही आरोप लगाते हैं कि मुसलमान भारत को एक इस्लामी राष्ट्र में तब्दील करने की योजना बना रहा है और सार्वजनिक रूप से कहते हैं कि भारत एक हिंदुत्व राष्ट्र बनेगा। आरएसएस विचारक द्वारा बहुत ही स्पष्ट रूप से दर्ज कर दिया गया है कि अन्य धर्मों को मानने वाले लोग इस देश में दोयम दर्जे के नागरिक के रूप में रहकर बहुसंख्यक समुदाय की सेवा करेंगे और उन्हें नागरिक अधिकार भी उपलब्ध नहीं होंगे।

केंद्र सरकार की अगुवाई कर रहे राजनीतिक दल की लगाम आर एस एस के हाथ में है। इसीलिए मोहन भागवत के वक्तव्य जिसके गंभीर परिणाम होंगे उन पर गंभीर चर्चा होनी चाहिए। भारत का हर वह नागरिक जो इस देश को एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के रुप में देखना चाहता है आगे आकर इन देश विरोधी ताकतों के नापाक मंसूबों का डटकर मुकाबला कर इन्हें परास्त करें।

जारीकर्ता
एम के फैज़ी
राष्ट्रीय अध्यक्ष
सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी ऑफ़ इंडिया

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