पी.एफ.आई.-टर्की संबंधः भारत के लिए चिंता का विषय
धार्मिक अतिवाद उन लोगों के लिए घातक है जो इसके मूल्यों के अनुरूप नहीं है, या इसके सिद्धांतों को फिर से ढालते या प्रस्तुत नहीं करते हैं। यह नियंत्रण चाहता है और शक्ति ही एक ऐसा साधन है जो इसे बली के बकरे के रूप में प्रस्तुत करने के लिए अपने विशिष्ट कहर, विनाश और क्रूरता को खत्म करने में सक्षम बनाता है। चरमपंथियों को देना उन्हें सक्षम बनाता है और इससे भी बदतर इसने इन्हें प्रोत्साहित किया।श्
-क्रिस्टीना ऐनजेला
हिन्दुस्तान टाइम्स में हाल ही में प्रकाशित रिपोर्ट में यह स्पष्ट किया है कि भारत में हमले के लिए टर्की, पी.एफ.आई. जैसे आंतकी संगठन का सहयोग कर रहा है। यह सूचना इसलिए सही प्रतीत हो रहा है क्योंकि पूर्व में भी टर्की ने भारतीय उपमहादवीप में दखल अंदाजी के लिए दोहा, कतर का इस्तेमाल करने का प्रयास किया था। टर्की का आक्रमक रवैया यह स्पष्ट करता है कि पी.एफ.आई जैसे इस्लामिक चरमपंथी संगठन को टर्की के रेसेप तैययप एड्र्ोगन सरकार द्वारा धन मुहैया कराया जाता है। तुर्क-पी.एफ.आई षडयंत्र का पर्दाफाश तब हुआ जब चरमपंथी संगठन पी.एफ.आई के कुछ सदस्य पूर्व में कतर की यात्रा पर कुछ तुर्क साथी से धन की व्यवस्था के लिए मिले थे, जिससे कि उनके संगठन का ‘अंकारा योजना‘ भारत में फलीभूत हो सके। भारतीय खुफिया तंत्र के पास पर्याप्त सबूत है जिससे यह साबित किया जा सकता है कि पिछले साल भारत में लंबे चले विरोध प्रदर्शन के लिए भारतीय मुसलमान को एकत्रित कर अंततः टर्की सरकार को सहयोग किया गया।
टर्की अपने आप को विश्व में मुसलमानों के रक्षक के रूप में प्रदर्शित करता है और यह मुसलमान को ऐसे किनारों पर ला कर खड़ा करता है जहाॅं पी.एफ.आई जैसे चरमपंथी संगठन से जुड़ने के अलावा कोई भी विकल्प मुसलमानों के पास नहीं बचता और इसके बदले उन्हें अपने आकाओं को खुश करने के लिए हिंसक गतिविधि में प्रयोग किया जाता है। यह पृष्ठभूमि एरडोगन के सउदी अरब के वैश्विक स्तर पर इस्लामिक दुनिया में प्रभुत्व को चुनौती देने का निंरतर प्रयास के खिलाफ आता है और मुसलमानों के लिए माॅडल के रूप में आटोमन परंपराओं के साथ एक नया आकार देने वाला रूढ़ीवादी तुर्की को पेश करता है। तुर्क पी.एफ.आई आंतकी गतिविधि अकेले भारत तक ही सीमित नहीं है। यह बाध्यकारी है कि इसका असर पड़ोसी देश जिसमें बड़ी मुसलमान आबादी है वहां पर पड़ेगा। यह भारत के अस्तित्व के लिए खतरा पैदा करने वाली अस्थिरता को पैदा करेगा।
जबकि भारत अपने आप को आर्थिक मोर्चों पर मजबूत करने के लिए संघर्ष कर रहा है। पी.एफ.आई जैसी विरोधी ताकतें मुसलमान को उकसाकर उन्हें आतंक के रास्ते पर लाने के लिए प्रयासरत हैं और इसे जिहाद करार दिया जा रहा है। जिहाद का वास्तविक मतलब पता होना चाहिए। इसका सीधा सा मतलब है खुद को और दूसरों को किसी भी नुकसान करने से रोकना। इस्लाम यह कभी नहीं सिखाता कि अपने पड़ोसी से इसलिए लड़ा जाए क्योंकि वो दूसरे धर्म से हैं। पी.एफ.आई से सहानुभूति विकसित करने से पहले मुसलमानों को यह महसूस होना चाहिए कि वो मुसलमानों के बेहतरी करने का दावा करते हैं परंतु उनके हर एक कार्य में नफरत, प्रतिशोध, राजनीतिक, हत्या इत्यादि होती है जो कि बदले में शांतिप्रिय मुसलमानों के लिए शत्रुतापूर्ण वातावरण बनाती है। मुसलमान के रूप में हमें यह निर्णय लेना होगा हमें किस रास्ते पर चलना होगा। मोहम्मद पैगम्बर के रास्ते पर या पी.एफ.आई जैसे चरमपंथी संगठन द्वारा दिखाए गए रास्ते पर। हमें विकल्प सावधानी से चुनना होगा क्योंकि इसका असर भविष्य में हमारे बच्चों पर पड़ेगा।