- समान नागरिक संहिता के बारे में अपना उत्तर विधि आयोग को प्रेषित करें!
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की अपील
नई दिल्ली: 26 जून 2023
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव मौलाना मुहम्मद फ़ज़ल-उर-रहीम मुजद्दिदी साहब ने अपने प्रेस नोट में कहा है कि देश में मुस्लिम पर्सनल लॉ की सुरक्षा और इसे प्रभावित करने वाले किसी भी क़ानून को रोकना बोर्ड के मुख्य उद्देश्यों में से है; इसलिए बोर्ड अपनी स्थापना से ही समान नागरिक संहिता का विरोध करता रहा है, दुर्भाग्यवश सरकार और सरकारी संगठन इस मुद्दे को बार-बार उठाते हैं। भारत के विधि आयोग ने 2018 में भी इस विषय पर राय मांगी थी, बोर्ड ने एक विस्तृत और तर्कसंगत जवाब दाखिल किया था जिसका सारांश यह था कि समान नागरिक संहिता संविधान की भावना के विरुद्ध है और देशहित में भी नहीं है; बल्कि इससे नुक़सान होने का डर है, बोर्ड के एक प्रतिनिधिमंडल ने विधि आयोग के समक्ष अपनी दलीलें भी रखीं और काफ़ी हद तक आयोग ने इसे स्वीकार कर लिया और घोषणा कर दी कि फ़िलहाल समान नागरिक संहिता की कोई आवश्यकता नहीं है; लेकिन दुर्भाग्य से विधि आयोग ने 14 जून 2023 को पुनः जनता को एक नोटिस जारी कर समान नागरिक संहिता के संबंध में राय मांगी है और जवाब दाखिल करने के लिए 14 जुलाई 2023 तक का समय निर्धारित किया है। बयान में आगे कहा गया कि बोर्ड इस संबंध में शुरू से ही सक्रिय है, बोर्ड ने आयोग को पत्र लिखकर इस बात पर नाराज़गी जताई है कि इतने महत्वपूर्ण मुद्दे के लिए केवल एक माह की अवधि निर्धारित की गयी है; इसलिए इस अवधि को कम से कम 6 महीने तक बढ़ाया जाना चाहिए, इसके साथ ही बोर्ड ने अपना जवाब दाखिल करने के लिए देश के प्रसिद्ध और विशेषज्ञ न्यायविदों से परामर्श करके एक विस्तृत जवाब भी तैयार किया है जो लगभग एक सौ पेज का है जिसमें समान नागरिक संहिता के सभी पहलुओं को स्पष्ट किया गया है और देश की एकता और लोकतांत्रिक ढांचे को होने वाले संभावित नुक़सान को प्रस्तुत किया गया है, इसके साथ ही विधि आयोग की वेबसाइट पर जवाब दाखिल करने और समान नागरिक संहिता के विरुद्ध अपना दृष्टिकोण दिखाने के लिए एक संक्षिप्त नोट भी तैयार किया गया है।
महासचिव ने अपने बयान में यह भी कहा कि ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का एक प्रतिनिधिमंडल जिसमें सभी धार्मिक और मिल्ली संगठनों के प्रमुख शामिल होंगे, जल्द ही विधि आयोग के अध्यक्ष से व्यक्तिगत रूप से मुलाक़ात करेंगे और स्थिति स्पष्ट करने का प्रयास करेंगे। बोर्ड के ज़िम्मेदार विभिन्न अल्पसंख्यक प्रतिनिधियों, आदिवासी नेताओं, विपक्षी नेताओं, धर्मनिरपेक्ष विचारधारा वाले बहुसंख्यक संप्रदाय के राजनीतिक और सामाजिक नेताओं के साथ बैठकें भी कर रहे हैं और ये बैठकें सार्थक भी साबित हो रही हैं। आशा है कि जल्द ही इन गणमान्य लोगों के साथ एक विशेष बैठक और प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की जाएगी; इसलिए सभी लोगों से अनुरोध है कि वे भारत के विधि आयोग के आधिकारिक ई-मेल पते (membersecretary-lci@gov.in)
पर निम्नलिखित सन्देश पर आधारित ई-मेल अंग्रेज़ी, हिन्दी, उर्दू या अपनी स्थानीय भाषा में प्रेषित करें:
“मैं समान नागरिक संहिता पर कड़ी आपत्ति करता हूं, यह हमारे देश की बहुलवादी संरचना और विविधता को जर्जर करेगा और संविधान में दी गई धार्मिक स्वतंत्रता के विपरीत होगा, इससे देश को कोई लाभ नहीं होगा; बल्कि राष्ट्रीय एकता को हानि पहुँचेगी; इसलिए समान नागरिक संहिता बिल्कुल लागू नहीं की जानी चाहिए और संविधान के दिशानिर्देशों के अनुच्छेद-44 को हटा देना ही उचित है।”
महासचिव ने कहा कि बोर्ड चाहता है कि कम से कम पाँच लाख आपत्तियाँ दर्ज की जाएँ; इसलिए मुस्लिम संगठनों और संस्थानों के साथ-साथ व्यक्तियों और व्यक्तित्वों से पुरज़ोर अनुरोध किया जाता है कि वे पूरी सावधानी के साथ अपनी आपत्तियां दर्ज करें और इसकी एक प्रति ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को इस ईमेल पते (aimplboard@gmail.com) पर प्रेषित करें, इसके साथ ही हमवतनी भाइयों द्वारा भी आपत्तियां दर्ज करने का प्रयास करें और विभिन्न चरणों में बोर्ड द्वारा की जाने वाली अपीलों का पालन करें।
✍🏻 जारीकर्ता
डॉ. मुहम्मद वक़ारुद्दीन लतीफ़ी
कार्यालय सचिव